DNS क्या है? – What is DNS In Hindi

DNS Kya Hai -: DNS (Domain Name System), डोमेन नेम (जैसे example.com) को IP Address (जैसे 104.239. 197.100) में बदल देता है। 

उदाहरण के लिए, जब कोई वेब एड्रेस (मतलब की URL जैसे masterprogramming.in) किसी ब्राउज़र में टाइप किया जाता है तो DNS सर्वर, उस नाम से संबद्ध वेब सर्वर का IP एड्रेस लौटाता हैं जिसका इस्तेमाल ब्राउजर, वेब पेज लोड करने के लिए करते हैं। 

तो दोस्तों यह थी DNS की एक बेसिक सी जानकारी, यदि आप इसके बारे में Detail में जानना चाहते है तो आप इस आर्टिकल को आगे पढ़ते रहे क्योकि आज के इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे कि DNS Kya Hai? DNS कैसे कार्य करता है? और DNS कैसे IP address ढूंढ कर हमे वेबसाइट तक पहुंचाता है?

तो आइये अब बिना समय गवाए जानते है कि DNS क्या है? (What is DNS In Hindi)

DNS क्या है? (What is DNS In Hindi)

DNS क्या है? (What is DNS In Hindi)

Definition -: DNS का फूल फॉर्म Domain Name System है. DNS का कार्य यूजर द्वारा टाइप किये गए domain name को IP address मे बदलना होता है।

हर वेबसाइट का अपना एक unique IP address रहता है जब आप वेब ब्राउज़र मे किसी वेबसाइट का डोमेन नेम डालते है तो DNS उस वेबसाइट का IP address प्रदान करता है।

उदाहरण -: जब आप अपने वेब ब्राउज़र में कोई domain name टाइप करते है जैसे google.com तो इन्हे DNS के ज़रिए 197.51.67.87 या इसी तरह के valid IP Address मे बदल दिया जाता है।

DNS द्दारा domain name का IP address प्रदान करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि बिना IP address  के हम उस वेबसाइट तक नहीं पहुंच पाएंगे। इंटरनेट मे सभी वेब ब्राउज़र IP address के जरिए ही कार्य करते है।

IP address मे बहुत संख्याएं मौजूद होती है जिसे याद रख पाना कठिन कार्य है लेकिन वेबसाइट का domain name याद रखना काफी आसान रहता है। मगर डोमेन नेम के जरिये वेबसाइट को एक्सेस करने के लिए हमे इस डोमेन नेम के ip एड्रेस की जरुरत होती है जो की हमे dns प्रदान करता है। 

DNS को इंटरनेट की फोनबुक भी समझ सकते है. क्योंकि इसमें सभी Domain की unique IP एड्रेस का डेटाबेस होता है। 

हालाँकि अब दुनिया में कई वेबसाइटें हैं तो क्या इन सभी वेबसाइटों के IP address की जानकारी एक ही DNS server में संग्रहित की जाएगी? जी नहीं, ऐसा करना एक मुश्किल काम है और सुरक्षा की दृष्टि से भी यह उचित नहीं है।

जिस तरह इंटरनेट पूरे विश्वभर में फैला हुआ है, ठीक वैसे ही कई सारे Domain Name server दुनिया भर में फैले हुए हैं जहां जानकारी संग्रहीत की जाती है।

ये सभी सर्वर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यदि एक DNS में जानकारी नहीं मिलती है, तो यह दूसरे DNS से स्वचालित रूप से संपर्क कर लेते है और जानकारी प्राप्त करते है।

DNS के कारण आपको IP एड्रेस याद रखने और वेब ब्राउज़र पर IP एड्रेस की एक लंबी संख्या दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके बजाय, आप example.com जैसा डोमेन नाम दर्ज कर सकते हैं और फिर उस वेबसाइट या वेबपेज पर पहुंच सकते हैं।

DNS का इतिहास (History of DNS In Hindi)

लगभग 40 साल पहले जब इंटरनेट बहुत कम उपयोग होता था, उस दौरान वेबसाइट की संख्या सीमित मात्रा में हुआ करती थी. जिसके कारण IP एड्रेस याद रखना आसान होता था. लेकिन जब धीरे धीरे इंटरनेट का विस्तार होता गया, तो इसके साथ अनगिनत वेबसाइट भी बनने लगे।

अब इतने सारे वेबसाइट की IP एड्रेस याद रखना संभव नहीं है. इसी परेशानी को दूर करने के लिए Paul Mockapetris नामक कंप्यूटर साइंटिस्ट ने सन् 1980 मे DNS (Domain Name System) को विकसित किया।

DNS आने के बाद लोगो को सिर्फ domain name ही याद रखना पड़ता है. ब्राउज़र पर domain name टाइप करते ही DNS इसे IP address में परिवर्तित करके हमें उस वेबसाइट तक पहुंचाता है।

Public DNS क्या है? (What is Public DNS In Hindi)

पब्लिक DNS सभी लोगो के लिए उपलब्ध होता है. इस DNS मे मौजूद वेबसाइट को कोई भी इंटरनेट के जरिए access कर सकता है. इस DNS मे सभी आपकी वेबसाइट की IP एड्रेस देख और access कर भी सकता है।

Private DNS क्या है? (What is Private DNS In Hindi)

Private DNS थोड़ा अलग होता है. इसे सभी लोग इस्तेमाल नहीं कर सकते. यह DNS कंपनी के firewall के पीछे होता है, जिसमें सिर्फ आंतरिक साइट का रिकॉर्ड स्टोर रहता है. Private DNS का उपयोग अक्सर वो लोग करते है जिन्हे अपनी वेबसाइट सीमित जनता को ही दिखाना होता है. उदाहरण के लिए – जब आप किसी वेबसाइट मे लॉगिन करते है अपना कार्य करने के लिए, तो इसे कोई भी access नहीं कर सकता है, क्योंकि इसमें आपकी जानकारी कंपनी के आंतरिक साइट मे स्टोर होती है।

DNS कैसे कार्य करता है? (How Does DNS Work)

जितने भी devices जो कि इंटरनेट से जुड़ी हुई है, सभी की अपनी एक unique IP address रहती है. DNS, यूजर द्वारा ब्राउज़र मे टाइप की गई Domain Name को IP एड्रेस मे बदल देता है,जिससे आप उस वेबसाइट को access करते है।

DNS आने के बाद आपको सभी वेबसाइट की कठीन IP एड्रेस को याद नहीं रखना पड़ता। आपको सिर्फ domain name ही याद रखना है जो कि काफी आसान रहता है।

जब हम अपने वेब ब्राउज़र पर कोई डोमेन नेम सर्च करते है जैसे Google.com तो इंटरनेट ये भाषा नहीं समझता है. इसे सिर्फ IP address की भाषा ही समझ आती है, और यह इसी मे कम्युनिकेट करता है. यदि आप domain name की जगह वेबसाइट का IP एड्रेस टाइप करते है, तब भी आप उस वेबसाइट को access कर सकते है. लेकिन IP एड्रेस मे अनेक संख्याएं मौजूद होती है जिसे याद रखना बहुत ही कठीन है. इसी कारण हम किसी वेबसाइट मे जाने के लिए डोमेन नेम का इस्तेमाल करते है।

DNS इंटरनेट की फोनबुक है, जिसमें सभी Domain की unique IP एड्रेस का डाटाबेस होता है। जब आप कोई डोमेन टाइप करते है, तो DNS सही IP एड्रेस ढूंढ कर आपको वेबसाइट पर पहुंचता है।

DNS मे वेबसाइट की IP एड्रेस ढूंढ़ने के लिए कई स्टेप होते है जिसमें सबसे पहले domain name को मशीन कि भाषा यानी IP एड्रेस मे परिवर्तित किया जाता है ताकि सर्वर समझ सके कि आपको किस वेबसाइट मे जाना है 

जब आप इंटरनेट मे कोई वेबसाइट सर्च करते है तो उस domain name से सम्बंधित सभी IP adress का मैपिंग होता है और सही IP adress मिल जाने के बाद ब्राउज़र मे वेबसाइट लोड हो जाता है. डोमेन नेम के IP एड्रेस को मैप करने कि इसी प्रक्रिया को DNS resolution कहते है.

DNS Server के प्रकार (Types of DNS Server)

1) DNS Resolver Server –  इसे resolver भी कहा जाता है. यह इंटरनेट में एक सर्वर होता है जो Domain name को IP Address में बदल देता है।

2) Root Server – जब आप कोई Domain name ब्राउज़र में type करते है, तो उसे IP एड्रेस मे बदलने की प्रक्रिया में Root server पहला स्टेप होता है।

3) TLD (Top level Domain) Server – किसी भी domain के आखिर में डॉट (.) के बाद name को TLD (Top level Domain) कहते है. यह specific एड्रेस की खोज करता है जो domain के अंतिम भाग को होस्ट करके रखता है. जैसे – www.google.com मे “.com” को TLD कहते है।

4) Authoritative Name Server – इस सर्वर मे सभी वेबसाइट की IP एड्रेस का डाटा स्टोर रहता है।

DNS कैसे IP address ढूंढ कर हमे वेबसाइट तक पहुंचाता है?

1) जब किसी ब्राउज़र मे domain name टाइप किया जाता है, तो ब्राउज़र सबसे पहले उस domain का IP address अपने cache memory मे सर्च करता है, क्योंकि अगर वेबसाइट पहले ओपन हुआ होगा तो वह cache memory मे स्टोर रहेगा।

2) यदि वेब ब्राउज़र के cache मेमोरी मे IP एड्रेस मिल जाता है तो वेबसाइट ओपन हो जाता है।

3) लेकिन अगर cache memory मे भी IP address नहीं मिलता है तो यह आपके device के ऑपरेटिंग सिस्टम जैसे Window, android और Mac को एक request भेजता है।

4) इसके बाद ऑपरेटिंग सिस्टम इस request को ISP (Internet Service Provider) के पास भेजता है. जिसके पास IP एड्रेस स्टोर होता है।

5) अगर उस वेबसाइट का IP एड्रेस मिलता है तो यह प्रक्रिया यही समाप्त हो जाती है और वेबसाइट ओपन हो जाती है।

6) यदि वहां पर भी IP एड्रेस नहीं मिला है तो resolver उस request को root सर्वर मे ट्रांसफर करता है।

7) रूट सर्वर इस request को आगे टॉप लेवल डोमेन तक भेजता है. TLD जैसे .com, .gov, .org, .edu इत्यादि है. जिस वेबसाइट का request है, उसे उसी TLD सर्वर के साथ कनेक्ट किया जाता है. अगर Google.com का request है तो ये .com वाले TLD सर्वर में कनेक्ट होगा।

8) अब आखिर में Top level domain server से जानकारी प्राप्त करने के बाद, actual name server  के बारे में जानकारी authoritative name server से प्राप्त की जाती है, जहाँ से डोमेन का IP address ज्ञात होता है।

8) वेबसाइट का IP एड्रेस मिलने पर इसे client यानी आपके कंप्यूटर या device को भेजा जाता है, जो ब्राउज़र के cache मेमोरी मे save होता है ताकि अगली बार उसी वेबसाइट को टाइप करने पर ये प्रोसेस फिर से दोहराना न पड़े।

हालांकि, देखने मे ये काफी लंबा प्रोसेस लगता होगा, लेकिन ये इतनी तेज़ी से होता है कि हमे पता भी नहीं चलता।

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निष्कर्ष

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमनें DNS के बारे में बात की और जाना कि DNS क्या है? (What is DNS In Hindi) और DNS कैसे कार्य करता है?

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